अग्नि से जन्मी, अग्नि में खो जाए, वो अमर पंछी, जो | हिंदी कविता

"अग्नि से जन्मी, अग्नि में खो जाए, वो अमर पंछी, जो राख से फिर उभर आए। हर बार जलकर नया जन्म पाए, अपनी ही भस्म में नयी उड़ान पाए। पंखों में उसके आशा की ज्योत जलती, हर हार के बाद वो फिर से निकलती। आंधियों से टकराकर मुस्कुराती है, फीनिक्स की रूह कभी थकती नहीं, रुकती नहीं। ©kavi Abhishek Pathak"

 अग्नि से जन्मी, अग्नि में खो जाए,
वो अमर पंछी, जो राख से फिर उभर आए।
हर बार जलकर नया जन्म पाए,
अपनी ही भस्म में नयी उड़ान पाए।

पंखों में उसके आशा की ज्योत जलती,
हर हार के बाद वो फिर से निकलती।
आंधियों से टकराकर मुस्कुराती है,
फीनिक्स की रूह कभी थकती नहीं, रुकती नहीं।

©kavi Abhishek Pathak

अग्नि से जन्मी, अग्नि में खो जाए, वो अमर पंछी, जो राख से फिर उभर आए। हर बार जलकर नया जन्म पाए, अपनी ही भस्म में नयी उड़ान पाए। पंखों में उसके आशा की ज्योत जलती, हर हार के बाद वो फिर से निकलती। आंधियों से टकराकर मुस्कुराती है, फीनिक्स की रूह कभी थकती नहीं, रुकती नहीं। ©kavi Abhishek Pathak

#phoenix #avikikavishala

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