आज शाम मैं कह न सकूं तो तुम बोल देना
थोड़ी सी मदिरा कानों में घोल देना
न बांधो मजबूती से दुपट्टा अपना
हवा इश्क की है थोड़ा सा झोल देना
तपती है रूह जेठ की दोपहरी में
एक करम जुल्फों को खोल देना
क्या कहूं क्या न कहूं मोहब्बत में
बताना इशारों में बस लफ्ज तोल देना
Dr KR Prbodh
©K R Prbodh
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