सूख कर सारे आंसू पत्थर हो जाए इतना भी नहीं रुलाना | हिंदी शायरी

"सूख कर सारे आंसू पत्थर हो जाए इतना भी नहीं रुलाना चाहिए बंजर हो जाए ज़मीन दिल की आंखे छोड़ ही दे, ख़्वाब कोइ भी बुन ना सब खराशें फ़िर अपनी अपनी सी लगने लगे बातों से ज़्यादा खामोशियों में जी लगने लगे अंधेरे दे सुकून बांहे फैला कर, बहरूपिया सी रोशनी ठगने लगे नींद ना आए मौत की चाह में, ये आंखे दौर कई सदिया फ़िर जगने लगे फ़िर कोई आह,होठों पे ना फर्द हो सके ऐसा बिखरे की उम्मीदें सब सर्द हो सके किनारे ले जा कर कोई मासूम नहीं डुबाना चहिए मरहमो का आसरा दे कर खंज़र नहीं चुभाना चहिए और, क़ाबिल ए गौर हैं,ज़रा सुन तो लो कोई दर्द फ़िर कभी चोट ही ना दे पाए इतना भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए... ©ashita pandey बेबाक़"

 सूख कर सारे आंसू पत्थर हो जाए
इतना भी नहीं रुलाना चाहिए
बंजर हो जाए ज़मीन दिल की
आंखे छोड़ ही दे, ख़्वाब कोइ भी बुन ना
सब खराशें फ़िर अपनी अपनी सी लगने लगे
बातों से ज़्यादा खामोशियों में जी लगने लगे
अंधेरे दे सुकून बांहे फैला कर,
बहरूपिया सी रोशनी ठगने लगे
नींद ना आए मौत की चाह में,
ये आंखे दौर कई सदिया फ़िर जगने लगे
फ़िर कोई आह,होठों पे ना फर्द हो सके
ऐसा बिखरे की उम्मीदें सब सर्द हो सके
किनारे ले जा कर कोई मासूम नहीं डुबाना चहिए
मरहमो का आसरा दे कर खंज़र नहीं चुभाना चहिए
और, क़ाबिल ए गौर हैं,ज़रा सुन तो लो
कोई दर्द फ़िर कभी चोट ही ना दे पाए
इतना भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए...

©ashita pandey  बेबाक़

सूख कर सारे आंसू पत्थर हो जाए इतना भी नहीं रुलाना चाहिए बंजर हो जाए ज़मीन दिल की आंखे छोड़ ही दे, ख़्वाब कोइ भी बुन ना सब खराशें फ़िर अपनी अपनी सी लगने लगे बातों से ज़्यादा खामोशियों में जी लगने लगे अंधेरे दे सुकून बांहे फैला कर, बहरूपिया सी रोशनी ठगने लगे नींद ना आए मौत की चाह में, ये आंखे दौर कई सदिया फ़िर जगने लगे फ़िर कोई आह,होठों पे ना फर्द हो सके ऐसा बिखरे की उम्मीदें सब सर्द हो सके किनारे ले जा कर कोई मासूम नहीं डुबाना चहिए मरहमो का आसरा दे कर खंज़र नहीं चुभाना चहिए और, क़ाबिल ए गौर हैं,ज़रा सुन तो लो कोई दर्द फ़िर कभी चोट ही ना दे पाए इतना भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए... ©ashita pandey बेबाक़

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