Unsplash *...बीत गया दिसम्बर...*
गैरों को तो गैर लिखूं
अपनो को लिखूं क्या अम्बर।
कहते तो सब ही अपने हैं
नदियां, झील, समन्दर।।
क्या रहा क्या चला गया
कुछ पता चला क्या अम्बर।
ठंडी, ठंडी रातों में ही देख
यूं बीत गया दिसम्बर।।
कुछ सख़्त लगा पहले से ज्यादा
पर हुआ वक्त क्या अम्बर।
कुछ जज्बात भी खोज लिए
है नैनन ने दूजा मंजर।।
खुशबू ने लिखा फूलों की चाहत
मैं लिखूं चाहता क्या अम्बर।
कोई मिले जो पूरी कविता लिख दूं
कुछ बाहर,कुछ अंदर।।
~आकाश द्विवेदी ✍️
©Aakash Dwivedi
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