सूर्य के उदय कि दिशा हो तुम, जीवन के गुरूत्वाकर्षण | हिंदी कविता

"सूर्य के उदय कि दिशा हो तुम, जीवन के गुरूत्वाकर्षण का बल हो तुम, शिशुकाल में चलने की शक्ति हो तुम, युवावस्था में स्फूर्ति की ज्योति हो तुम, शरीर वृद्ध हुआ तो बूढ़े कंधो की मजबूती तुम, मृत्यु पश्चात आत्मा को परमात्मा में विलीन करने की अंतिम प्रकाश हो तुम। हो शक्ति तुम, हो दुर्गा तुम, काली भी तुम, हमारे अंतर्मन का अभिमान हो तुम। कर्ण कर्ण में बसी है तेरी भक्ति, है तुझसे ही पूरे संसार की शक्ति। दे ऐसा आशीर्वाद हमें दूर हो सारी कठिनाई, नाश हो अंधकार का - जीवन सुखमय हो जाए। ©Rahul Roy 'Dev'"

 सूर्य के उदय कि दिशा हो तुम,
जीवन के गुरूत्वाकर्षण का बल हो तुम,
शिशुकाल में चलने की शक्ति हो तुम,
युवावस्था में स्फूर्ति की ज्योति हो तुम,
शरीर वृद्ध हुआ तो बूढ़े कंधो की मजबूती तुम,
मृत्यु पश्चात आत्मा को परमात्मा में विलीन
करने की अंतिम प्रकाश हो तुम।

हो शक्ति तुम,
हो दुर्गा तुम,
काली भी तुम,
हमारे अंतर्मन का अभिमान हो तुम।
कर्ण कर्ण में बसी है तेरी भक्ति,
है तुझसे ही पूरे संसार की शक्ति।
दे ऐसा आशीर्वाद हमें दूर हो सारी कठिनाई,
नाश हो अंधकार का - जीवन सुखमय हो जाए।

©Rahul Roy 'Dev'

सूर्य के उदय कि दिशा हो तुम, जीवन के गुरूत्वाकर्षण का बल हो तुम, शिशुकाल में चलने की शक्ति हो तुम, युवावस्था में स्फूर्ति की ज्योति हो तुम, शरीर वृद्ध हुआ तो बूढ़े कंधो की मजबूती तुम, मृत्यु पश्चात आत्मा को परमात्मा में विलीन करने की अंतिम प्रकाश हो तुम। हो शक्ति तुम, हो दुर्गा तुम, काली भी तुम, हमारे अंतर्मन का अभिमान हो तुम। कर्ण कर्ण में बसी है तेरी भक्ति, है तुझसे ही पूरे संसार की शक्ति। दे ऐसा आशीर्वाद हमें दूर हो सारी कठिनाई, नाश हो अंधकार का - जीवन सुखमय हो जाए। ©Rahul Roy 'Dev'

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