White ग़ज़ल
अपनी चाहत को अगर आब बना सकता था
आँसुओं से भी वो सैलाब बना सकता था
उसने आँखों में रखा अश्क बनाकर मुझको
चाहता तो वो मुझे ख़्वाब बना सकता था
हिज्र में फूल जो पीले से हुए जाते हैं
छू भी लेता तो वो सुरख़ाब बना सकता था
साथ होते हुए भी हाथ बढ़ाया न गया
वर्ना दरिया को भी पायाब बना सकता था
अपना समझा तो किनारे पे खड़े हो वर्ना
ठहरे पानी में भी गिर्दाब बना सकता था
तितलियों से था उसे इश्क़ बगीचे से नहीं
सूखे पेड़ों को भी शादाब बना सकता था
@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'
©Dharmendra Azad