White एक कोरा कागज
जो मेरे मन को पढ़ लेता।
एक नीली स्याही की कलम
जिससे थोड़ा रंग भर लेता ।
कोरे सफेद कागज पर उकरे
लाल दाग से वो ढका एहसास
जिनसे मैं अगले निश्चल दाग को भांप लेता।
मौन अक्षरों से मै
खुद की कुछ सुन लेता
चलती रुकती कलम से जरा
खुद को मैं संभाल लेता ।
कह पाता मैं भी अपने हर जज्बात
जो नहीं सुन पाए वो सभी भीड़ में आज
सुला लेता वह मुझे अपनी कागजी गोद में
और सिखा देता एक सबक जीवन का ।
कोरे पन्ने पर रंगीन एहसास लिखकर मैं
खुद को शायद आजाद कर लेता
या प लेता एक सुकून
उसी में फिर यूं खो जाता ।
कैसा यह मसीहा बन
कागज और कलम का रिश्ता
मेरे एहसास के रंग धो जाता ।
शायद खुशियां और दर्द के बीच
भीड़ और तन्हाई के बीच
थोड़ा मैं भी आराम कर लेता ।
अपनी बात बता इस कोरे कागज के मसीहा को
मैं भी निश्चित हो जाता
एक कोरा कागज जो शायद
कभी मेरे बेचैन मन को पढ़ पाता ।
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