मांओं (नारी)का कोई जीवन नही, कोई सपने नहीं, केवल घर के आदमी वर्ग को आगे बढ़ाओ फिर अपने आप को कमज़ोर मानो।
खाना लगा, नहाने का पानी रख, कपड़े दे, हर छोटी चीज हर छोटे काम के लिए इस तरह मां पर हुक्म चलाते है जैसे उसका जीवन केवल हमारे काम करने के लिए ही मिला है। ऐसे बच्चों को माएं बददुआ नहीं देती उनके अंदर बसा इंसान देता है कि ये तो इतनी समझ नही रखती लेकिन तुम पढे लिखे जानकर होकर उसका जीवन संवार नहीं सकते तो उसे जैसा उसका जीवन है वो तो जीने दो।
मां बच्चों को उनके काम खुद करने दो ये भी संस्कार है।🙏
अपने घर की नारी में कोई हिम्मत हौसला नहीं भरते बल्कि उन्हें और दबाकर रखते है हमारी एक आवाज एक इशारे पर उठे,बैठे उतना ही बोले,इस तरह के परिवेश में हम रखते है। बहुत ही शर्मनाक हरकत है ये हमारे आधुनिक जमाने हमारी शिक्षा और हमारे धर्म,संस्कृति के लिए।🤦
केवल electronic device चलाने को आधुनिक युग या मॉर्डन जमाना नही कहा जाएगा। जब तक घर की नारी का जीवन आसान जीने लायक नही लगेगा तब तक कुछ सही नही होगा रिश्तों में।