ऐ जिंदगी, यूँ रोज़ रोज़
मेरा तमाशा ना बनाया कर
थोड़ी सी ख़ुशी मिलने की चाह में
मेरे अंतर्मन को चोट दिलाया ना कर
नहीं पता क्या कसूर है मेरा
अब बस कर यूँ रोज़ रोज़ रुलाया ना कर
पल भर की जीवन मे यूँ मुझे
हर छोटी चीजों के लिए तरसाया ना कर
ऐ जिन्दगी अब बस कर
यूँ रोज़ रोज़ मेरा तमाशा ना बनाया कर ।।
©Vidya Jha
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