कई बार बिखरने के बाद मैं अक्सर समेट लेती हूँ खुद | हिंदी कोट्स

"कई बार बिखरने के बाद मैं अक्सर समेट लेती हूँ खुद को। बिना किसी के कहे बिना किसी से कुछ सुने। यह समेटने और बिखरने की प्रक्रिया चलती रहती है मेरे मन के भीतर। क्योंकि मैं नहीं चाहती उदासी के धूसर रंगों के साथ जीना। मैं चाहती हूँ हर बार इंद्रधनुषी रंग जीवन में कुछ दर्द,कुछ खुशी,कुछ हँसी और कुछ आँसू जो है समेटे। मैं चाहती हूँ लिख दूँ जीवन की परिभाषा संघर्षों में तपकर कुंदन बनने तक या दबाव में आकर हीरा बनने तक। womanlife ©Writer Mamta Ambedkar"

 कई बार बिखरने के बाद
मैं अक्सर समेट लेती
 हूँ खुद को।
बिना किसी के कहे
बिना किसी से कुछ सुने।
यह समेटने और बिखरने
 की प्रक्रिया
चलती रहती है
मेरे मन के भीतर।
क्योंकि मैं नहीं चाहती
उदासी के धूसर रंगों के
 साथ जीना।
मैं चाहती हूँ हर बार
इंद्रधनुषी रंग जीवन में
कुछ दर्द,कुछ खुशी,कुछ हँसी 
और कुछ आँसू जो है समेटे।
मैं चाहती हूँ लिख दूँ जीवन की
 परिभाषा
संघर्षों में तपकर कुंदन बनने तक
या दबाव में आकर हीरा बनने तक।

womanlife

©Writer Mamta Ambedkar

कई बार बिखरने के बाद मैं अक्सर समेट लेती हूँ खुद को। बिना किसी के कहे बिना किसी से कुछ सुने। यह समेटने और बिखरने की प्रक्रिया चलती रहती है मेरे मन के भीतर। क्योंकि मैं नहीं चाहती उदासी के धूसर रंगों के साथ जीना। मैं चाहती हूँ हर बार इंद्रधनुषी रंग जीवन में कुछ दर्द,कुछ खुशी,कुछ हँसी और कुछ आँसू जो है समेटे। मैं चाहती हूँ लिख दूँ जीवन की परिभाषा संघर्षों में तपकर कुंदन बनने तक या दबाव में आकर हीरा बनने तक। womanlife ©Writer Mamta Ambedkar

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