मैं लिखूं तो कहानी एक प्रेम की..
पर लिख ही देने से ...
सुना ही देने से..
या छुपा भी लेने से..
प्रेम...कई हिस्सों में बदल जाता है..
हम सब तरकीबें कर के..बचाये भी अगर..
खोना हो अगर..तो प्रेम निकल ही लेता है..
सभी कही अनकही कहानियों से..
और कभी कभी..
न भी होना हो जहाँ..
पहुँच ही जाता है चुपके से..
प्रेम का होना..वो ही देख सके है जो
या प्रेम में हो..या प्रेममय हो..
और इसके दिखावे इतने है कि..
किसी भी हद्द तक उतर कर लोग
इसके सच्चे होने की कसमें खाते है..
ख़ैर... प्रेम तो प्रेम है..
क्या पता कब झूठ कहते कहते..
सच का ही हो जाये..किसे पता !!
©grey7
#प्रेम