दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त होते हैं, बिन मांगे ये सा | हिंदी कविता

"दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त होते हैं, बिन मांगे ये साया और सांसें देते हैं। धूप में छांव, बरसात में आसरा बनते हैं, इनकी खामोशी में कई किस्से छिपे रहते हैं। हवा को ये महकाते हैं, फल-फूल से सजाते हैं, अपनी जड़ों से मिट्टी को थामे रहते हैं। इंसानों की तरह फरेब नहीं करते कभी, दरख़्त तो बस देने में यकीन रखते हैं। चलो, इनके साये में बैठें कुछ पल, इनसे सीखें ये फर्ज निभाने का हुनर। दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त हैं, ये हकीकत है, बस इन्हें सहेजें, इनसे सजी हमारी जन्नत है। ©Balwant Mehta"

 दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त होते हैं,
बिन मांगे ये साया और सांसें देते हैं।
धूप में छांव, बरसात में आसरा बनते हैं,
इनकी खामोशी में कई किस्से छिपे रहते हैं।

हवा को ये महकाते हैं, फल-फूल से सजाते हैं,
अपनी जड़ों से मिट्टी को थामे रहते हैं।
इंसानों की तरह फरेब नहीं करते कभी,
दरख़्त तो बस देने में यकीन रखते हैं।

चलो, इनके साये में बैठें कुछ पल,
इनसे सीखें ये फर्ज निभाने का हुनर।
दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त हैं, ये हकीकत है,
बस इन्हें सहेजें, इनसे सजी हमारी जन्नत है।

©Balwant Mehta

दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त होते हैं, बिन मांगे ये साया और सांसें देते हैं। धूप में छांव, बरसात में आसरा बनते हैं, इनकी खामोशी में कई किस्से छिपे रहते हैं। हवा को ये महकाते हैं, फल-फूल से सजाते हैं, अपनी जड़ों से मिट्टी को थामे रहते हैं। इंसानों की तरह फरेब नहीं करते कभी, दरख़्त तो बस देने में यकीन रखते हैं। चलो, इनके साये में बैठें कुछ पल, इनसे सीखें ये फर्ज निभाने का हुनर। दरख़्त हमारे सच्चे दोस्त हैं, ये हकीकत है, बस इन्हें सहेजें, इनसे सजी हमारी जन्नत है। ©Balwant Mehta

#Trees #दरख्त

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