स्वयं को बिना तलाशे, निकल पड़ी आनंद की तलाश में बह | हिंदी Life

"स्वयं को बिना तलाशे, निकल पड़ी आनंद की तलाश में बह। मालूम था पथ मुसीबतों से भरा होगा , लेकिन पीछे मुड़कर न देखी बह । स्वयं से बिना आज्ञा लिए , निरन्तर चलती रही बह। स्वयं को टालती हुई , एक पल भी न रुकी बह। सोचती रही यह, आनन्द अभी होगा दूर बहुत। भटकी हुई बह, जब उसे आनंद की प्राप्ति न हुई, थककर हताश पड़ गई बह। उसी समय मन के भीतर से पुकार गूंजी, हताश पड़ी अपने भीतर तलाशने लगी बह। स्वयं को जब तलाशा उसने , आनंद को भी निकट पाया उसने । ©Divya Hariwanshi"

 स्वयं को बिना तलाशे,
निकल पड़ी आनंद की तलाश में बह।
मालूम था पथ मुसीबतों से भरा होगा ,
लेकिन पीछे मुड़कर न देखी बह ।
स्वयं से बिना आज्ञा लिए ,
निरन्तर चलती रही बह।
स्वयं को टालती हुई ,
एक पल भी न रुकी बह।
सोचती रही यह,
आनन्द अभी होगा दूर बहुत।
भटकी हुई बह,
जब  उसे आनंद की प्राप्ति न हुई,
थककर हताश पड़ गई बह।
उसी समय मन के भीतर से पुकार गूंजी,
हताश पड़ी अपने भीतर तलाशने लगी बह।
स्वयं को जब तलाशा उसने ,
आनंद को भी निकट पाया उसने ।

©Divya Hariwanshi

स्वयं को बिना तलाशे, निकल पड़ी आनंद की तलाश में बह। मालूम था पथ मुसीबतों से भरा होगा , लेकिन पीछे मुड़कर न देखी बह । स्वयं से बिना आज्ञा लिए , निरन्तर चलती रही बह। स्वयं को टालती हुई , एक पल भी न रुकी बह। सोचती रही यह, आनन्द अभी होगा दूर बहुत। भटकी हुई बह, जब उसे आनंद की प्राप्ति न हुई, थककर हताश पड़ गई बह। उसी समय मन के भीतर से पुकार गूंजी, हताश पड़ी अपने भीतर तलाशने लगी बह। स्वयं को जब तलाशा उसने , आनंद को भी निकट पाया उसने । ©Divya Hariwanshi

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