ज़ख्म चाहे गहरे हों मगर भरने लगते हैं, बैचेनी के | हिंदी शायरी

"ज़ख्म चाहे गहरे हों मगर भरने लगते हैं, बैचेनी के साथ भी सूरज में ढलने लगते हैं.! Sumit.. ् ©write"

 ज़ख्म चाहे गहरे हों 
मगर भरने लगते हैं,
बैचेनी के साथ भी 
सूरज में ढलने लगते हैं.!

Sumit..









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ज़ख्म चाहे गहरे हों मगर भरने लगते हैं, बैचेनी के साथ भी सूरज में ढलने लगते हैं.! Sumit.. ् ©write

#Likho 'दर्द भरी शायरी'

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