White कोहरे सी फैली ख्वाबों की चादर। जिस्म अलसाई | हिंदी कविता Video

"White कोहरे सी फैली ख्वाबों की चादर। जिस्म अलसाई सी कैसे निकले बाहर। हक़ीक़त आईने सी आँखों के सामने। नजरें जमाने की लगीं हैं आँकने। पलकें बन्द की लगा कुछ साधने। बना दिल मतलबी लगा वक्त काटने। चेतना अँगड़ाई ली लगा धुंध छांटने। कदमें जो थी थमी लगी राहें नापने। मंजिल खोई थी दिखने लगी सामने। ©अलका मिश्रा ©alka mishra "

White कोहरे सी फैली ख्वाबों की चादर। जिस्म अलसाई सी कैसे निकले बाहर। हक़ीक़त आईने सी आँखों के सामने। नजरें जमाने की लगीं हैं आँकने। पलकें बन्द की लगा कुछ साधने। बना दिल मतलबी लगा वक्त काटने। चेतना अँगड़ाई ली लगा धुंध छांटने। कदमें जो थी थमी लगी राहें नापने। मंजिल खोई थी दिखने लगी सामने। ©अलका मिश्रा ©alka mishra

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