सोचती हूं "के कमी रह गईं शायद कुछ या जितना था वो | हिंदी कविता Vi

"सोचती हूं "के कमी रह गईं शायद कुछ या जितना था वो काफी न था , नही समझ पाई तो समझा दिया होता या जितना समझ पाई वो काफी न था , शिकायत थी तुम्हारी की तुम जताते नही प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं, अरे मोहब्त की क्या नुमाईश करती मेरी आंखों में जितना तुम्हमे नजर आया क्या वो काफी नहीं था" "सोचता हू के क्या कमी रह गईं, क्या जितना था वो काफी नही था " ©Little Aarya "

सोचती हूं "के कमी रह गईं शायद कुछ या जितना था वो काफी न था , नही समझ पाई तो समझा दिया होता या जितना समझ पाई वो काफी न था , शिकायत थी तुम्हारी की तुम जताते नही प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं, अरे मोहब्त की क्या नुमाईश करती मेरी आंखों में जितना तुम्हमे नजर आया क्या वो काफी नहीं था" "सोचता हू के क्या कमी रह गईं, क्या जितना था वो काफी नही था " ©Little Aarya

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