कहूँ अपना या ना तुमको प्रिये कहू या प्रेयसी या बन | हिंदी कविता

"कहूँ अपना या ना तुमको प्रिये कहू या प्रेयसी या बन जाऊँ अनजान कोई सोचू नहीं तुम को मैं अपना दुविधा भरे मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो साथ रहो तुम बन के संगिनी स्वप्न ऐसे सजा लूं क्या या जब आए स्वप्न ऐसा तब मैं नींद से उठ जाऊँ स्वप्न देखते मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो प्रार्थनाओं में हमेशा साथ तुम्हारा मांगता हूं आस करू मैं मिलने की या आस लगाना छोड़ दु आशावादी मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो । ©pen_of_sawan"

 कहूँ अपना या ना तुमको
प्रिये कहू या प्रेयसी
या बन जाऊँ अनजान कोई 
सोचू नहीं तुम को मैं अपना
दुविधा भरे मन को मेरे 
तुम ही कुछ सुझाव दो

साथ रहो तुम बन के संगिनी
स्वप्न ऐसे सजा लूं क्या
या जब आए स्वप्न ऐसा 
तब मैं नींद से उठ जाऊँ 
स्वप्न देखते मन को मेरे 
तुम ही कुछ सुझाव दो

प्रार्थनाओं में हमेशा 
साथ तुम्हारा मांगता हूं 
आस करू मैं मिलने की 
या आस लगाना छोड़ दु 
आशावादी मन को मेरे 
तुम ही कुछ सुझाव दो ।

©pen_of_sawan

कहूँ अपना या ना तुमको प्रिये कहू या प्रेयसी या बन जाऊँ अनजान कोई सोचू नहीं तुम को मैं अपना दुविधा भरे मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो साथ रहो तुम बन के संगिनी स्वप्न ऐसे सजा लूं क्या या जब आए स्वप्न ऐसा तब मैं नींद से उठ जाऊँ स्वप्न देखते मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो प्रार्थनाओं में हमेशा साथ तुम्हारा मांगता हूं आस करू मैं मिलने की या आस लगाना छोड़ दु आशावादी मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो । ©pen_of_sawan

कहूँ अपना या ना तुमको
प्रिये कहू या प्रेयसी
या बन जाऊँ अनजान कोई
सोचू नहीं तुम को मैं अपना
दुविधा भरे मन को मेरे
तुम ही कुछ सुझाव दो

साथ रहो तुम बन के संगिनी

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