कभी कभी दिल करता है कि तुम्हें आवाज़ लगा लूं और पू | हिंदी कविता

"कभी कभी दिल करता है कि तुम्हें आवाज़ लगा लूं और पूछूं क्या हम कभी मिल सकते हैं? आखिर मैं ही क्यूं ? क्या दीवारों को तोड़कर एक नहीं हो सकते ? मैने तुम्हारे सामने समर्पण कर दिया है! लेकिन जब तुम्हें आवाज़ लगाता हूं तो खो सा जाता हूं, मेरा मन सिर्फ तुम्हें चाहता है। लगता है, किसी भी पल रोशनी आ जाएगी, मस्तिष्क में असीम शांति का अहसास होता है। ये लिखते हुए भी मैं सिर्फ तुम्हें देख रहा हूं। ये लिखते हुए भी तुम सचित्र मेरे सामने हो। मैं लिखता भी इसलिए हूं क्यूंकि डरता हूं, कहीं तुम दूर ना हो जाओ। और फिर डरता हूं, उन लंबे उदासी भरे दिनों को सोचकर। और चाहता हूं, बस साथ तुम्हारा और उस सुखद अहसास को जो सदियों से हमारे बीच है। क्या तुम जानते हो, तुम्हारे जाते ही उदासियों ने दिल में घर कर लिया था। अब थोड़ा सुकून सा है। ©Kamlesh Bohra"

 कभी कभी दिल करता है कि तुम्हें आवाज़ लगा लूं
और पूछूं
क्या हम कभी  मिल सकते हैं?

आखिर मैं ही क्यूं ?

क्या दीवारों को तोड़कर एक नहीं हो सकते ?
मैने तुम्हारे सामने
समर्पण कर दिया है!

लेकिन जब तुम्हें आवाज़ लगाता हूं 
तो खो सा जाता हूं, 
मेरा मन सिर्फ तुम्हें चाहता है।

लगता है, 
किसी भी पल रोशनी आ जाएगी, 
मस्तिष्क में असीम शांति का अहसास होता है।

ये लिखते हुए भी मैं सिर्फ तुम्हें देख रहा हूं।
ये लिखते हुए भी तुम सचित्र मेरे सामने हो।


मैं लिखता भी इसलिए हूं क्यूंकि डरता हूं,
कहीं तुम दूर ना हो जाओ। 
और फिर डरता हूं,
उन लंबे उदासी भरे दिनों को सोचकर।

और चाहता हूं, बस साथ तुम्हारा
और उस सुखद अहसास को
जो सदियों से हमारे बीच है।
क्या तुम जानते हो, 
तुम्हारे जाते ही
उदासियों ने 
दिल में घर कर लिया था।
अब थोड़ा सुकून सा है।

©Kamlesh Bohra

कभी कभी दिल करता है कि तुम्हें आवाज़ लगा लूं और पूछूं क्या हम कभी मिल सकते हैं? आखिर मैं ही क्यूं ? क्या दीवारों को तोड़कर एक नहीं हो सकते ? मैने तुम्हारे सामने समर्पण कर दिया है! लेकिन जब तुम्हें आवाज़ लगाता हूं तो खो सा जाता हूं, मेरा मन सिर्फ तुम्हें चाहता है। लगता है, किसी भी पल रोशनी आ जाएगी, मस्तिष्क में असीम शांति का अहसास होता है। ये लिखते हुए भी मैं सिर्फ तुम्हें देख रहा हूं। ये लिखते हुए भी तुम सचित्र मेरे सामने हो। मैं लिखता भी इसलिए हूं क्यूंकि डरता हूं, कहीं तुम दूर ना हो जाओ। और फिर डरता हूं, उन लंबे उदासी भरे दिनों को सोचकर। और चाहता हूं, बस साथ तुम्हारा और उस सुखद अहसास को जो सदियों से हमारे बीच है। क्या तुम जानते हो, तुम्हारे जाते ही उदासियों ने दिल में घर कर लिया था। अब थोड़ा सुकून सा है। ©Kamlesh Bohra

#Missing Praveen Storyteller Irfan Saeed Bulandshari Ruchika Satish @Anupriya

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