मुहब्बत में जो बगैर लाभ-हानि के जुड़े होते हैं न
उनके दिल में एक छोटे बच्चे की तरबियत हो रही होती है।
वह मासूम अहसास बस ख्वाब सजाता है, लड़ता-झगड़ता है,
रूठता-मनाता है पर,
उसे तोड़ जाने का ख़्याल भी लाना मुनासिब नहीं समझता।
वक़्त की रौ में बेसाख़्ता बस बहता चला जाता है।
उसे ख़्याल नहीं होता सही-गलत का।
उसे तो बस किसी कीमत पर,
थोड़ी सी भी उलझी डोर को सुलझाना होता है।
सब सही करना होता है।
उसे जब तोड़ दिया जाता है,
तो वो चीखता है चिल्लाता है।
पर सिवा टूटने के क्या हाथ आएगा उसके।
कभी तोहमत तो कभी नसीहत।
बेशक वो आगे बढ़ जाएगा।
अपने लिए कोई न कोई मकाम तो ढूँढ लेगा।
खुश रहने की हज़ार वजह तलाश लेगा।
खूब परिपक्व हो जाएगा।
पर अपने अंदर पल रहे बच्चे का गला घोंट देगा।
उन्हें तो फिर भी कोई अफसोस न होगा।
सौदागर कभी सौदा बुरा नहीं करते।
©Meenakshi Raje
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