बचपन की यादें ना जाने क्यों बुझे से मन के चिराग हैं।
"कुछ बदले से मिजाज़ हैं- ना ठिठोलियां, न कोई हसीं मजाक है
• बहुत शांत गंभीर सा कोई बवाल है
ढूंढते हैं चलो फिर से कहीं खोई हुई मुस्कान
वो जो बातें गुम सी हो गईं
चल उनको कहीं से पकड़ लाते हैं अरे हां वो गली का हुडदंग
और वो भी जो मोहल्ले की चौपाल है
ना जानें कब से ना सुने उसके किस्से
हैं सभी वही तो फिर क्यों
आज बदल गए ये सवाल हैं।
ना ठिठोलियाँ, ना हसी मजाक है
बहुत शांत सा कोई गंभीर बवाल है
-- Shagun S Mishra
@thelosbuymer_1342
©Shagun Mishra
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