White मन हर शख्स के अंदर होता है एक मासूम सा बच्च | हिंदी शायरी

"White मन हर शख्स के अंदर होता है एक मासूम सा बच्चा । जो उम्र की सीढ़ियों पे चढ़ते हुए थकने लगता है कहीं किसी कोने में ठहरकर सुबकने लगता है । न जाने कितनी बार सहम जाता है वो किसी अपने को खोने से , किसी के अजनबी होने से , कुछ सपनो के टूटने से , पुराने साथी छूटने से । पर उस बालक को जिंदा रखना पड़ता है , है दिल एक पौधा जिसे हरा रखना तो बनता है । किसी के साथ वक्त गुजारने से , जो हो गई गलतियां उन्हें सुधारने से , अपनी कहानी में नए किरदार लाने से , थोड़ा हमदर्दी रखकर जमाने से । मन के बंदे को जरूरी है रखना जीवंत, हैं दुख अगर तो मौजूद है सुख भी अनंत । है संसार एक चुंबक ये तो तुम पर निर्भर करता है , किसको दिखाई पीठ किसे लगाए सीने से इसका असर पड़ता है । मन है एक नन्ही सी जान इस को रखो खुश , किसको है मालूम कब जायेंगी ये सांसें रुक । ©Pratyush Saxena"

 White मन

हर शख्स के अंदर होता है एक मासूम सा बच्चा ।

जो उम्र की सीढ़ियों पे चढ़ते हुए थकने लगता है 
कहीं किसी कोने में ठहरकर सुबकने लगता है ।

न जाने कितनी बार सहम जाता है वो

 किसी अपने को खोने से ,
 किसी के अजनबी होने से ,
 कुछ सपनो के टूटने से ,
 पुराने साथी छूटने से ।

पर उस बालक को जिंदा रखना पड़ता है ,
 है दिल एक पौधा जिसे हरा रखना तो बनता है ।

किसी के साथ वक्त गुजारने से , 
जो हो गई गलतियां उन्हें सुधारने से ,
अपनी कहानी में नए किरदार लाने से ,
थोड़ा हमदर्दी रखकर जमाने से ।

मन के बंदे को जरूरी है रखना जीवंत,
हैं दुख अगर तो मौजूद है सुख भी अनंत ।
है संसार एक चुंबक ये तो तुम पर निर्भर करता है ,
किसको दिखाई पीठ किसे लगाए सीने से इसका असर पड़ता है ।

 मन है एक नन्ही सी जान इस को रखो खुश ,
किसको है मालूम कब जायेंगी ये सांसें रुक ।

©Pratyush Saxena

White मन हर शख्स के अंदर होता है एक मासूम सा बच्चा । जो उम्र की सीढ़ियों पे चढ़ते हुए थकने लगता है कहीं किसी कोने में ठहरकर सुबकने लगता है । न जाने कितनी बार सहम जाता है वो किसी अपने को खोने से , किसी के अजनबी होने से , कुछ सपनो के टूटने से , पुराने साथी छूटने से । पर उस बालक को जिंदा रखना पड़ता है , है दिल एक पौधा जिसे हरा रखना तो बनता है । किसी के साथ वक्त गुजारने से , जो हो गई गलतियां उन्हें सुधारने से , अपनी कहानी में नए किरदार लाने से , थोड़ा हमदर्दी रखकर जमाने से । मन के बंदे को जरूरी है रखना जीवंत, हैं दुख अगर तो मौजूद है सुख भी अनंत । है संसार एक चुंबक ये तो तुम पर निर्भर करता है , किसको दिखाई पीठ किसे लगाए सीने से इसका असर पड़ता है । मन है एक नन्ही सी जान इस को रखो खुश , किसको है मालूम कब जायेंगी ये सांसें रुक । ©Pratyush Saxena

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