कुछ अनसुलझी पहेली इस कायनात की, समझ नहीं पाता हूँ | हिंदी कविता

"कुछ अनसुलझी पहेली इस कायनात की, समझ नहीं पाता हूँ जब कोई नज़र नहीं आता है तब, परछाई साथ खडी़ पाता हूँ। ©Amol M. Bodke"

 कुछ अनसुलझी पहेली इस कायनात की, 
समझ नहीं पाता हूँ
जब कोई नज़र नहीं आता है तब, 
परछाई साथ खडी़ पाता हूँ।

©Amol M. Bodke

कुछ अनसुलझी पहेली इस कायनात की, समझ नहीं पाता हूँ जब कोई नज़र नहीं आता है तब, परछाई साथ खडी़ पाता हूँ। ©Amol M. Bodke

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