एक कतरा आँसू मेरी आँखों से क्या बह गया !
कम्बख़्त हाल-ए-दिल वो सारा मेरा कह गया !
बड़े करीने से बनाया था इक दर्द ए महल हमने,
बस एक याद क्या आई कि सब कुछ ढह गया !
ये गम-ए-हिज्र है जिसने हमें इतना रूला दिया,
वरना बे-वफ़ाई तक तेरी यह दिल था सह गया !
अब जो मेरी ज़ीस्त में तुम कहीं शामिल नहीं,
बताओ फिर भला हम पर सनम क्या रह गया !
©Parastish
ज़ीस्त- ज़िन्दगी
#parastish