नश्वर काया की चिंता नहीं है साहेब
हम तो अंतरात्मा का चिंतन करते हैं,
जमाने से मिले जख्मों पे क्रंदन नहीं
हम तो जख्म सीने का मंथन करते हैं.
आजकल गैरों से नहीं साहेब.....
हम तो अपनो से ज्यादा सावधान रहते हैं,
अगर मिल जाये जिससे मन मेरा
तो हम उसका ह्रदय से अभिनंदन करते हैं.
जब फँस जाये मेरी भवँर में नौका
तब पार मेरे रघुनंदन ही करते हैं,
ऐसे दीनदयाल रघुनंदन जी का....
हम सदा निज भावों से वंदन करते हैं।
स्वरचित् ✍ राजदीप राजा
🌷🙏🙏
©Rajdeep Parmar