शिकायतें रहीं तमाम उम्र ज़िन्दगी से,
हम करते भी तो और क्या ज़िन्दगी से!
स्याही सूखती गयी कुछ सिक्को की मजबूरी में,
हम औऱ उकेरते भी तो क्या ज़िन्दगी से!
आईना बन बैठा है ये सफ़ा मेरा,
हम और लिखते शेर भी तो क्या ज़िन्दगी से!
नज़र नही आता कोई रास्ता अब “मुसाफ़िर”,
हम और करें भी तो क्या ज़िन्दगी से!
©दिल-ऐ-मुसाफ़िर!
#Memories