मुझको फूल देख मुस्काता,
मैं भी तो मुस्काती हूँ।
खिले खिले फूलों के जैसे,
मैं बिल्कुल खिल जाती हूँ।।
रन्जोंग़म से दूर बहुत हूँ,
अपना और पराया क्या।
कवि, प्रचण्ड, जीवन में अपने,
बचपन पुनः बुलाया क्या ।।
umakant Tiwari, prachand,
©उमाकान्त तिवारी "प्रचण्ड"
बचपन ।