Unsplash अनकहे लफ्ज़
अनकहे लफ्ज़ जो होंठों पर ठहर गए,
आँखों के किनारों पर गहर गए।
हर साँस में कुछ कहने की चाह,
पर खामोशी में छिपी रही हर आह।
दिल की बात दिल में रह गई,
ख़ुद से लड़ते-लड़ते सह गई।
जो कह देते तो शायद सुकून होता,
पर डर था, कहीं रिश्ता न टूट जाता।
उन शब्दों का वज़न हल्का था,
पर ख़ामोशी का बोझ भारी।
कहने से पहले ही डर गए,
कहीं न बिखर जाए ये दुनिया सारी।
आज भी वो लफ्ज़ मचलते हैं,
हर गूंज में धीरे से चलते हैं।
अनसुने, अनदेखे, पर जिंदा हैं,
उन लम्हों के आईने में बंद हैं।
काश, वक्त को थोड़ा मोड़ पाते,
अनकहे लफ्ज़ फिर से बोल पाते।
पर शायद खामोशी ही सच्चाई है,
जो रह जाए वो ही गहराई है।
©Writer Mamta Ambedkar
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