अपने मन के कैनवास पर, कल्पनाओं के रंगों से तुम्हा | English Video

"अपने मन के कैनवास पर, कल्पनाओं के रंगों से तुम्हारी न जाने कितनी, आकृतियों को गढ़ा है मैंने। अपने ख्वाबों की ईषिका से, जब-जब तुमको गढ़ती हूँ, तब-तब तुम्हारा अक्श सजीव हो उठता है। और तुम कैनवास से निकल कर, मेरी दुनिया में दाखिल हो जाते हो। तब मैं और गहरी शिद्दत से तुममें रंग भरती हूँ। और बङे जतन से तुमको तराशती हूँ। तब तुम्हारी मौजूदगी मूर्त रूप धारण कर लेती है और मैं तुम्हारी गहरी,रहस्यमयी ,काली आँखों में डूबती चली जाती हूँ, और चाहती हूँ सदा इनमें डूबे रहना। तब महसूस करती हूँ कि न जाने कितनी स्याहा रातें और न जाने कितने युगों-युगों तक मैं यूँ ही तुम्हें कल्पनाओं में गढ़ती रही हूँ और गढ़ती रहूँगी।"

अपने मन के कैनवास पर, कल्पनाओं के रंगों से तुम्हारी न जाने कितनी, आकृतियों को गढ़ा है मैंने। अपने ख्वाबों की ईषिका से, जब-जब तुमको गढ़ती हूँ, तब-तब तुम्हारा अक्श सजीव हो उठता है। और तुम कैनवास से निकल कर, मेरी दुनिया में दाखिल हो जाते हो। तब मैं और गहरी शिद्दत से तुममें रंग भरती हूँ। और बङे जतन से तुमको तराशती हूँ। तब तुम्हारी मौजूदगी मूर्त रूप धारण कर लेती है और मैं तुम्हारी गहरी,रहस्यमयी ,काली आँखों में डूबती चली जाती हूँ, और चाहती हूँ सदा इनमें डूबे रहना। तब महसूस करती हूँ कि न जाने कितनी स्याहा रातें और न जाने कितने युगों-युगों तक मैं यूँ ही तुम्हें कल्पनाओं में गढ़ती रही हूँ और गढ़ती रहूँगी।

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