धीरे धीरे अंतस का  सारा शोर थम जाता है.. सारी पीड़ | हिंदी Poetry

"धीरे धीरे अंतस का  सारा शोर थम जाता है.. सारी पीड़ाएं,सारे दुख  सुन्न से हो सो जाते हैं.. फिर कुछ भी हैरान नहीं करता, कुछ भी परेशान नहीं करता.. पीछे मुड़कर देखने पर  लगता है जिस जिंदगी को जीया, भावनाओं का जो ज्वार उमड़ा  सब बचकाना था  सब कुछ बेमानी था....  जिस को जाना था  वो चला ही जाता है ख़ामोशी से  बस, अपने निशाँ छोड़ कर  धीमे धीमे जिदगी  फ़िर ढर्रे पर आने लगती है  किसी के बिना  जी न पाने का डर कम होता जाता है  बस..  कभी कभी सीने में  एक आग सी उठती है  एक ख़ामोश शोर कानों में गूंजता है  फ़िर, सब सतह पर पहले सा हो जाता है ©हिमांशु Kulshreshtha"

 धीरे धीरे अंतस का 
सारा शोर थम जाता है..
सारी पीड़ाएं,सारे दुख 
सुन्न से हो सो जाते हैं..
फिर कुछ भी हैरान नहीं करता,
कुछ भी परेशान नहीं करता..
पीछे मुड़कर देखने पर 
लगता है जिस जिंदगी को जीया,
भावनाओं का जो ज्वार उमड़ा 
सब बचकाना था 
सब कुछ बेमानी था.... 
जिस को जाना था 
वो चला ही जाता है ख़ामोशी से 
बस, अपने निशाँ छोड़ कर 
धीमे धीमे जिदगी 
फ़िर ढर्रे पर आने लगती है 
किसी के बिना 
जी न पाने का डर कम होता जाता है 
बस.. 
कभी कभी सीने में 
एक आग सी उठती है 
एक ख़ामोश शोर कानों में गूंजता है 
फ़िर, सब सतह पर पहले सा हो जाता है

©हिमांशु Kulshreshtha

धीरे धीरे अंतस का  सारा शोर थम जाता है.. सारी पीड़ाएं,सारे दुख  सुन्न से हो सो जाते हैं.. फिर कुछ भी हैरान नहीं करता, कुछ भी परेशान नहीं करता.. पीछे मुड़कर देखने पर  लगता है जिस जिंदगी को जीया, भावनाओं का जो ज्वार उमड़ा  सब बचकाना था  सब कुछ बेमानी था....  जिस को जाना था  वो चला ही जाता है ख़ामोशी से  बस, अपने निशाँ छोड़ कर  धीमे धीमे जिदगी  फ़िर ढर्रे पर आने लगती है  किसी के बिना  जी न पाने का डर कम होता जाता है  बस..  कभी कभी सीने में  एक आग सी उठती है  एक ख़ामोश शोर कानों में गूंजता है  फ़िर, सब सतह पर पहले सा हो जाता है ©हिमांशु Kulshreshtha

धीरे धीरे...

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