"हा कही किनारे पर ही हूं खड़ा आज भी।।
उस अल्हड़ सी वादियों में जहा अब कोई नही आता!
ना पूछता मेंरी खामोशीयो को ।
ना ही अपनी खुशियों के राज बताता है।।
धीरे –धीरे मेरी मुस्कान भी उन पत्तो की तरह झड़ सी गई है।
इन धुंध सी अंधेरी वादियों में!
सच बताओ ना !ऊपर वाले क्या अब भी कोई आयेगा?
मुझे इन अंधेरों से बचाने!
हा कही किनारे पर ही हूं खड़ा आज भी।।
©Ahsas Alfazo ke
"