मिट गयी गलतफहमियाँ सभी,
जो लगते थे खास कभी |
एक चिराग़ था उम्मीद का,
उनकी हरकतों से वो भी बुझा बैठे |
जब पर्दा आँखों पर पड़ा हो,
आईने क्यों ही दिखाकर ज़ाया किया जाये,
जो खुद ही जला रहे है मकान अपने,
उनके घरों को क्या ही सजाया जाये |
कहते है बच्चे मन के सच्चे,
इनसे बातें क्यों ही छिपाया जाये,
मगर असलियत तो यही है की,
एक चिंगारी पूरा शहर तबाह कर गयी |
©Sonam kuril
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