आंखें पहले से ही नम है मेरी और कितनी कोशिश करोगे मुझे रुलाने की
आज तुम्हें सदियों के बाद देख कर हंस दिया हूं
मैं वजह तो पूछते मेरे थोड़ा सा मुस्कुराने की
इस अजनबी शहर में तुम्हारे सिवा किसीको ही जानता हूं मैं
आज मुझे अपनी आंखों में रहने दो
मुसाफिर हूं इस शहर का
कल ना जाने कहां होगा मेरा ठिकाना
आज अपनी आगोश में रहने दो
कल जो होगा सो होगा कल का बोझ आज ही क्यों उठाना!!!
विशाल भारतीय
की कलम से
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©Vishal bhartiya
#अल्फाज