स्वयं को चोटिल करते है कभी, कभी किसी दूजे को चोट प | हिंदी कविता Video

"स्वयं को चोटिल करते है कभी, कभी किसी दूजे को चोट पहुंचा देते हैं। नौसिखिए हैं इस खेल के, एक हुनर रोज सीखते हैं। कभी नन्हें से कदमों से, कभी मजबूत पद चिन्हों से, कभी मेल जोल से इनके काम करते हैं, उम्र के साथ रंग में ढल जायेंगे इसके आस इसकी लगाए हम बहुत हैं। उस्तादों के फन को निहारकर, अपनी कारीगरी को तराशते हैं। नौसिखिए हैं इस खेल के, एक हुनर रोज सीखते हैं। ©Ruchi Jha"

स्वयं को चोटिल करते है कभी, कभी किसी दूजे को चोट पहुंचा देते हैं। नौसिखिए हैं इस खेल के, एक हुनर रोज सीखते हैं। कभी नन्हें से कदमों से, कभी मजबूत पद चिन्हों से, कभी मेल जोल से इनके काम करते हैं, उम्र के साथ रंग में ढल जायेंगे इसके आस इसकी लगाए हम बहुत हैं। उस्तादों के फन को निहारकर, अपनी कारीगरी को तराशते हैं। नौसिखिए हैं इस खेल के, एक हुनर रोज सीखते हैं। ©Ruchi Jha

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