रह गया दिल बेसहारा, रात साहिल का किनारा, टिमटि | हिंदी कविता

"रह गया दिल बेसहारा, रात साहिल का किनारा, टिमटिमाती लौ दिये की, कह रही अब सायोनारा, गिले-शिकवे सब भुलाकर, मिल न पाये अब दोबारा, रह-ए-उल्फ़त में मुसाफ़िर, कर लिया ख़ुद का ख़सारा, राह तकतीं हैं उम्मीदें, जब तलक नभ में सितारा, बुरा अच्छा जैसा भी था, वक़्त सबने ही गुजारा, मुक़द्दर वालों ने 'गुंजन', प्यार में ख़ुद को संवारा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra"

 रह  गया  दिल  बेसहारा,
रात साहिल का किनारा,

टिमटिमाती लौ  दिये की,
कह रही अब  सायोनारा,

गिले-शिकवे सब भुलाकर,
मिल न पाये  अब दोबारा,

रह-ए-उल्फ़त में मुसाफ़िर,
कर लिया ख़ुद का ख़सारा,

राह    तकतीं   हैं   उम्मीदें,
जब तलक नभ में सितारा,

बुरा अच्छा  जैसा  भी  था,
वक़्त   सबने  ही    गुजारा,

मुक़द्दर   वालों  ने   'गुंजन',
प्यार  में  ख़ुद  को  संवारा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

रह गया दिल बेसहारा, रात साहिल का किनारा, टिमटिमाती लौ दिये की, कह रही अब सायोनारा, गिले-शिकवे सब भुलाकर, मिल न पाये अब दोबारा, रह-ए-उल्फ़त में मुसाफ़िर, कर लिया ख़ुद का ख़सारा, राह तकतीं हैं उम्मीदें, जब तलक नभ में सितारा, बुरा अच्छा जैसा भी था, वक़्त सबने ही गुजारा, मुक़द्दर वालों ने 'गुंजन', प्यार में ख़ुद को संवारा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#कह रही अब सायोनारा#

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