आरज़ू हर आरजू की इंतहा नहीं होती, जब तक वह दिल के क | हिंदी शायरी
"आरज़ू हर आरजू की इंतहा नहीं होती,
जब तक वह दिल के कोने से नहीं निकली होती,
रूह भी कांप जाती है जब निकलती है ऐसी आरजू,
खुद खुदा भी पूरा करने लग जाता है साथ में।।"
आरज़ू हर आरजू की इंतहा नहीं होती,
जब तक वह दिल के कोने से नहीं निकली होती,
रूह भी कांप जाती है जब निकलती है ऐसी आरजू,
खुद खुदा भी पूरा करने लग जाता है साथ में।।