White विषय: "ठोकर" जीवन में जब भी कभी साहब ठोक | हिंदी Sad

"White विषय: "ठोकर" जीवन में जब भी कभी साहब ठोकर लगती है, कौन अपना कौन पराया पहचान हो जाती है। कुछ तो शिद्दत से रिश्ता हमसे ता-उम्र निभाती हैं कुछ बीच मंझधार में हमें छोड़ कर निकल जाती हैं। राह में चलते हुए लगें ठोकर तो सिर्फ शारीरिक क्षति होती है, लेकिन रिश्तों में जब लगती ठोकर तो मानसिक क्षति होती है। शरीर पर लगा घाव तो समय के साथ भर भी जाता है, लेकिन दिल पर लगा ज़ख्म हर पल याद दिलाता है। अनजाने में लगी ठोकर को तो माफ भी किया जा सकता है, जानबूझकर ठोकर मारने वाले को माफ नहीं किया जा सकता है। हर पल हर समय वो मनहूस लम्हा हमें याद आता है, हमारे आत्म सम्मान को जाने कितनी बार ठेस पहुँचाता है। संसार में कुछ लोग हमें सबक सिखाने के लिए आते हैं, कोई शारीरिक कोई मानसिक कोई आर्थिक ठोकर मार जाते हैं। स्वरचित एवं मौलिक रचना #sumitkikalamse ✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 😎 ©SumitGaurav2005"

 White 

विषय:  "ठोकर"

जीवन में जब भी कभी साहब ठोकर लगती है, 
कौन अपना कौन पराया पहचान हो जाती है।


कुछ तो शिद्दत से रिश्ता हमसे ता-उम्र निभाती हैं
कुछ बीच मंझधार में हमें छोड़ कर निकल जाती हैं।

राह में चलते हुए लगें ठोकर तो सिर्फ शारीरिक क्षति होती है, 
लेकिन रिश्तों में जब लगती ठोकर तो मानसिक क्षति होती है।

शरीर पर लगा घाव तो समय के साथ भर भी जाता है,
लेकिन दिल पर लगा ज़ख्म हर पल याद दिलाता है।

अनजाने में लगी ठोकर को तो माफ भी किया जा सकता है,
जानबूझकर ठोकर मारने वाले को माफ नहीं किया जा सकता है। 

हर पल हर समय वो मनहूस लम्हा  हमें याद आता है,
हमारे आत्म सम्मान को जाने कितनी  बार ठेस पहुँचाता है।

संसार में कुछ लोग हमें सबक सिखाने के लिए आते हैं,
कोई शारीरिक कोई मानसिक कोई आर्थिक ठोकर मार जाते हैं।

स्वरचित एवं मौलिक रचना
#sumitkikalamse
✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 😎

©SumitGaurav2005

White विषय: "ठोकर" जीवन में जब भी कभी साहब ठोकर लगती है, कौन अपना कौन पराया पहचान हो जाती है। कुछ तो शिद्दत से रिश्ता हमसे ता-उम्र निभाती हैं कुछ बीच मंझधार में हमें छोड़ कर निकल जाती हैं। राह में चलते हुए लगें ठोकर तो सिर्फ शारीरिक क्षति होती है, लेकिन रिश्तों में जब लगती ठोकर तो मानसिक क्षति होती है। शरीर पर लगा घाव तो समय के साथ भर भी जाता है, लेकिन दिल पर लगा ज़ख्म हर पल याद दिलाता है। अनजाने में लगी ठोकर को तो माफ भी किया जा सकता है, जानबूझकर ठोकर मारने वाले को माफ नहीं किया जा सकता है। हर पल हर समय वो मनहूस लम्हा हमें याद आता है, हमारे आत्म सम्मान को जाने कितनी बार ठेस पहुँचाता है। संसार में कुछ लोग हमें सबक सिखाने के लिए आते हैं, कोई शारीरिक कोई मानसिक कोई आर्थिक ठोकर मार जाते हैं। स्वरचित एवं मौलिक रचना #sumitkikalamse ✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 😎 ©SumitGaurav2005

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