ये दुनिया रंगमंच है बस , नए किरदार में ढल जा ।
नई कश्ती , नया मांझी , नई पतवार में ढल जा ।।
मजहबी ढंग में , सियासी जंग चलती है ।
चल तू अब चलकर , किसी हथियार में ढल जा ।।
यहां क्या , कौन अपना , किसी का कुछ नहीं 'अदीज़' ।
चल तू किसी मज़ार के , किरायेदार में ढल जा ।।
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