मंजिल की राह चलकर भी गुमराह हो गये। चंद सिक्कें पा | हिंदी विचार

"मंजिल की राह चलकर भी गुमराह हो गये। चंद सिक्कें पाकर ईमान से गाफ़िल हो गये।। वक्त के साये नसीब ने दूरियाँ क्या बढ़ायी । 'गनी' यकीं की बात पर अपने भी ग़ैर हो गये।। ©GANI KHAN"

 मंजिल की राह चलकर भी गुमराह हो गये।
चंद सिक्कें पाकर ईमान से गाफ़िल हो गये।।
वक्त के साये नसीब ने दूरियाँ क्या बढ़ायी ।
'गनी' यकीं की बात पर अपने भी ग़ैर हो गये।।

©GANI KHAN

मंजिल की राह चलकर भी गुमराह हो गये। चंद सिक्कें पाकर ईमान से गाफ़िल हो गये।। वक्त के साये नसीब ने दूरियाँ क्या बढ़ायी । 'गनी' यकीं की बात पर अपने भी ग़ैर हो गये।। ©GANI KHAN

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