बाजार कोई कमाता है धन आकर कोई यहाँ गंवाता नहीं जेब | हिंदी कविता

"बाजार कोई कमाता है धन आकर कोई यहाँ गंवाता नहीं जेब में फूटी कौड़ी तो आकर ललचाता मोल भाव है आम यहाँ पर हैं क्रेता विक्रेता घर जाता है लुटकर कोई बनकर कोई विजेता यही पेट भरता है सबका सुख सुविधा है देता गुणवत्ता जैसी होती है वैसी कीमत लेता बेखुद क्रय विक्रय का नाता आपस में है गहरा ठग लेती बाजार प्यार से कोई अनाड़ी ठहरा ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 बाजार
कोई कमाता है धन आकर
कोई यहाँ गंवाता
नहीं जेब में फूटी कौड़ी
तो आकर ललचाता

मोल भाव है आम यहाँ पर
हैं क्रेता विक्रेता
घर जाता है लुटकर कोई
बनकर कोई विजेता

यही पेट भरता है सबका
सुख सुविधा है देता
गुणवत्ता जैसी होती है
वैसी कीमत लेता

बेखुद क्रय विक्रय का नाता
आपस में है गहरा
ठग लेती बाजार प्यार से
कोई अनाड़ी ठहरा

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

बाजार कोई कमाता है धन आकर कोई यहाँ गंवाता नहीं जेब में फूटी कौड़ी तो आकर ललचाता मोल भाव है आम यहाँ पर हैं क्रेता विक्रेता घर जाता है लुटकर कोई बनकर कोई विजेता यही पेट भरता है सबका सुख सुविधा है देता गुणवत्ता जैसी होती है वैसी कीमत लेता बेखुद क्रय विक्रय का नाता आपस में है गहरा ठग लेती बाजार प्यार से कोई अनाड़ी ठहरा ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#बाजार

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