White लाखों की भीड़ में भी तन्हा सा रहता था मैं
रात के अंधेरे से बहुत डरता था मैं!
फिर हुआ यूं कि मेरी उससे मुलाकात हुई
आंखों ही आंखों में पहली बात हुई!
फिर बातों का सिलसिला कुछ आगे बढ़ा
कुछ इस तरह से हमारे प्यार का कारवां आगे बढ़ा!
राते सुहानी हो गई है मेरी, मुझे अंधेरे से अब डर नहीं लगता
मैं अकेला भी रहूं तो अकेलापन नहीं लगता!
प्यारा लगने लगा है वो चांद जिससे कभी दुश्मनी सी थी
अरे तुझसे पहले कहां मेरी किसी और से बनी थी!
अब सितम ये है कि तुझ बिन जी ना पाऊंगा
नहीं देखूंगा तुझे तो शायद मर जाऊंगा!
क्यूंकि बदरंग मेरे जीवन में केवल मायूसी थी
फिर हुआ यूं कि तुम मिली और जिंदगी सतरंगी हो गई!
कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)
©Indresh Dwivedi
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