मन की भाषा को मैं अधरों से ना बोलूंगा, हृदय में द | हिंदी कविता

"मन की भाषा को मैं अधरों से ना बोलूंगा, हृदय में दमन है कई राज़.... उन राज़ो को किंचित ना मैं खोलूंगा , ज़ज्बात पिरोए है मैंने , अल्फाज़ संजोए है मैंने , ख्वाब बुने है कई मैंने , याद बने है कई मेरे ... यूं यादों मे खों कर ही ख़ुद को ढूँढ रहा हूँ मैं । अन्तर्मन के प्रश्नों के उत्तर ढूँढ रहा हूँ मैं... . ©Karanjeet Sawariyan"

 मन की भाषा को मैं अधरों से ना बोलूंगा, 
हृदय में दमन है कई राज़....
उन राज़ो को किंचित ना मैं खोलूंगा ,

ज़ज्बात पिरोए है मैंने ,
अल्फाज़ संजोए है मैंने ,
ख्वाब बुने है कई मैंने ,
याद बने है कई मेरे ...

यूं यादों मे खों कर ही 
ख़ुद को ढूँढ रहा हूँ मैं ।

अन्तर्मन के प्रश्नों के 
उत्तर ढूँढ रहा हूँ मैं...




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©Karanjeet Sawariyan

मन की भाषा को मैं अधरों से ना बोलूंगा, हृदय में दमन है कई राज़.... उन राज़ो को किंचित ना मैं खोलूंगा , ज़ज्बात पिरोए है मैंने , अल्फाज़ संजोए है मैंने , ख्वाब बुने है कई मैंने , याद बने है कई मेरे ... यूं यादों मे खों कर ही ख़ुद को ढूँढ रहा हूँ मैं । अन्तर्मन के प्रश्नों के उत्तर ढूँढ रहा हूँ मैं... . ©Karanjeet Sawariyan

अन्तर्मन के प्रश्नों के
उत्तर ढूँढ रहा हूँ मैं...

by @KaranjeetSawariyan

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