ग़ज़ल
नज़रियों में गर फ़र्क पड़ जाए तो नज़रों में गढ़ जाते हैं।
जो हर सख्श में खामियां ढुंढते है मुसकिल में पड़ जाते हैं।
हां तुम अपनी अक्लो-जिहानत को हवा लगाव
ताज़े आम भी पड़े पड़े पेटी में सड़ जातें हैं।
फुलों से सिखों कांटों के बिच खुसबु देंना।
नाराजगी बदल जाती है जब नफ़रत में अड़ जाते हैं।
जिने के लिए मुहब्बत को पाएदार बनाओ।
युंही अपनी अना की हिफाजत में अपस में लड़ जाते हैं।
इखतिलाफ हो कोई बात नहीं बदगुमानियों से परहेज़ करो
वफा का पैमाना छलक जाए तो दुनिया में बिछड़ जाते हैं।
©Shadab (شاداب )
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