मोबाइल का शोर चहुं ओर मोबाइल का शोर है हर तरफ इसी | हिंदी कविता

"मोबाइल का शोर चहुं ओर मोबाइल का शोर है हर तरफ इसी का ज़ोर है ये न हो तो अपंग बनें इसके बिन न रह सकें एकमात्र यही सहारा है समय व्यतीत का बहाना है उचित मार्ग से भटके हैं अपनी ही दुनिया में अटके हैं आस पड़ोस की खबर नहीं कौन कहाँ है कुछ पता नहीं मोबाइल का कोई दोष नहीं इंसा को खुद कोई होश नहीं राह कहीं भटक जाता है वो मंजिल से दूर हो जाता है वो हाल यही आज सबका है जबसे मोबाइल आ टपका है बहुतों के धंधे भी छिन गए व्यापारी अंदर से हिल गए यही तो समय का ज़ोर है आज मोबाइल का शोर है .............................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit"

 मोबाइल का शोर

चहुं ओर मोबाइल का शोर है
हर तरफ इसी का ज़ोर है
ये न हो तो अपंग बनें
इसके बिन न रह सकें
एकमात्र यही सहारा है
समय व्यतीत का बहाना है
उचित मार्ग से भटके हैं
अपनी ही दुनिया में अटके हैं
आस पड़ोस की खबर नहीं
कौन कहाँ है कुछ पता नहीं
मोबाइल का कोई दोष नहीं
इंसा को खुद कोई होश नहीं
राह कहीं भटक जाता है वो
मंजिल से दूर हो जाता है वो
हाल यही आज सबका है
जबसे मोबाइल आ टपका है
बहुतों के धंधे भी छिन गए
व्यापारी अंदर से हिल गए
यही तो समय का ज़ोर है
आज मोबाइल का शोर है
..............................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

मोबाइल का शोर चहुं ओर मोबाइल का शोर है हर तरफ इसी का ज़ोर है ये न हो तो अपंग बनें इसके बिन न रह सकें एकमात्र यही सहारा है समय व्यतीत का बहाना है उचित मार्ग से भटके हैं अपनी ही दुनिया में अटके हैं आस पड़ोस की खबर नहीं कौन कहाँ है कुछ पता नहीं मोबाइल का कोई दोष नहीं इंसा को खुद कोई होश नहीं राह कहीं भटक जाता है वो मंजिल से दूर हो जाता है वो हाल यही आज सबका है जबसे मोबाइल आ टपका है बहुतों के धंधे भी छिन गए व्यापारी अंदर से हिल गए यही तो समय का ज़ोर है आज मोबाइल का शोर है .............................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

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मोबाइल का शोर

चहुं ओर मोबाइल का शोर है
हर तरफ इसी का ज़ोर है
ये न हो तो अपंग बनें
इसके बिन न रह सकें

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