सूर्य हैं आशा का प्रतीक निराशा के त | हिंदी कविता Video

"सूर्य हैं आशा का प्रतीक निराशा के तम को हर लेता हैं। सुप्त पड़े जग जीवों को, फिर नवजीवन से भर देता है। उदय भी स्थायी नहीं तो कहे स्थायी नहीं अस्त भी। आशा की किरणे हैं जो, जग जाओगे, चाहे हो पस्त भी। समयबद्ध हो जाना हैं, जैसे होता हैं दिवाकर। सफलता फिर आनी हैं हैं, जियें अगर अनुशासन अपनाकर। ©Kamlesh Kandpal "

सूर्य हैं आशा का प्रतीक निराशा के तम को हर लेता हैं। सुप्त पड़े जग जीवों को, फिर नवजीवन से भर देता है। उदय भी स्थायी नहीं तो कहे स्थायी नहीं अस्त भी। आशा की किरणे हैं जो, जग जाओगे, चाहे हो पस्त भी। समयबद्ध हो जाना हैं, जैसे होता हैं दिवाकर। सफलता फिर आनी हैं हैं, जियें अगर अनुशासन अपनाकर। ©Kamlesh Kandpal

#SunOfHope

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