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कभी जो कोई पुरुष
रोये तुम्हारे आगे
तो भर लेना बांहो में
और संभाल लेना उन्हें।
क्योंकि...
ये रोये है तो केवल माँ
के आगे...
दुसरा उस स्त्री के आगे
जिस पर ये भरोसा था की
वो समझेगी।
बिना कुछ सवाल किये उन्हें
थपकाते रहना...
और आंचल से पूंछना
उनके अश्रु
ये जो बह रहा है वो
लाचारी नही...
ये तो दर्द है
सफलता असफलता का,
तानों का, अकेलेपन का,
जोर से रोने का,
कई बार...बिखरने का
और अंततः वो रोना चाहते है
दर्द को कहना चाहते है
कि दर्द हुआ है सीने में।
जो छुपाए रखा फिजूल में
समाज के भय से
कोई ये न कहे की मर्द को
दर्द नही होता ।
शायद! ये परिभाषा उसे
कभी ठीक नहीं लगी
क्योंकि वो पत्थर नहीं है
जो महसूस न हो उसे
दर्द की बेहद!!!
कौशल्या मौसलपुरी जोधपुर
©कौशल ~
#Sad_Status रोता हुआ पुरुष