White कभी कभी बस वक्त की तरह गुजर जाने का मन होता | हिंदी शायरी

"White कभी कभी बस वक्त की तरह गुजर जाने का मन होता है... चुपचाप,निःशब्द बिना किसी शोर के कही चली जाना चाहती हूँ... पता ही न चले कि मेरा कोई अस्तित्व भी था... मैं थीं कहीं पर... सारे नामों निशान समेट कर निकल जाने का मन होता है... हर बार सोचती हूँ कि ईश्वर ने जब शरीर बनाया तब उन्हें एक और विकल्प देना था कुछ घण्टों के लिये मर जाने का विकल्प... कुछ देर के लिये ही सही सब खत्म हो जाने का एक पल... उस पल में मन कम से कम थाह तो ले लेता...कुछ देर के लिये आराम ही कर लेता...इतना कुछ एक साथ झेल झेल कर कैसा छलनी हुआ जा रहा है मन... झर-झर बहते आँसू भी अब हल्का नहीं कर पाते इसे... बोझ वही का वही रहता है चाहे कितना भी निकल जाये... हां जानती हूं कि ये सब बातें नहीं करनी चाहिए इतनी समझदार तो हो ही चुकी हूं पर अब ये मन घर मे चल रहे किसी समारोह के शोर के बीच एक कोने में बिस्तर पकड़ कर बेफिक्र सोते हुए बच्चे की तरह सोना चाहता है... कुछ देखना नहीं चाहता, कुछ सुनना नहीं चाहता.. बस चुपचाप गुजर जाना चाहता है हर हालातों के बीच..बिना कोई शोर किये ,बिना कोई निशान छोड़े... कुछ ख्वाब अनदेखे से... ©Jaishree Bedi Nanda"

 White कभी कभी बस वक्त की तरह गुजर जाने का मन होता है... चुपचाप,निःशब्द बिना किसी शोर के कही चली  जाना चाहती हूँ...
पता ही न चले कि मेरा कोई अस्तित्व भी था... मैं थीं कहीं पर...
 सारे नामों निशान समेट कर निकल जाने का मन होता है... हर बार सोचती हूँ कि ईश्वर ने जब शरीर बनाया तब उन्हें एक और विकल्प देना था कुछ घण्टों के लिये मर जाने का विकल्प...
कुछ देर के लिये ही सही सब खत्म हो जाने का एक पल... उस पल में मन कम से कम थाह तो ले लेता...कुछ देर के लिये आराम ही कर लेता...इतना कुछ एक साथ झेल झेल कर कैसा छलनी हुआ जा रहा है मन...  झर-झर बहते आँसू भी अब हल्का नहीं कर पाते इसे... बोझ वही का वही रहता है चाहे कितना भी निकल जाये...
हां जानती हूं कि ये सब बातें नहीं करनी चाहिए इतनी समझदार तो हो ही चुकी हूं पर अब ये मन घर मे चल रहे किसी समारोह के शोर के बीच एक कोने में बिस्तर पकड़ कर बेफिक्र सोते हुए बच्चे की तरह सोना चाहता है...
कुछ देखना नहीं चाहता, कुछ सुनना नहीं चाहता.. बस चुपचाप गुजर जाना चाहता है हर हालातों के बीच..बिना कोई शोर किये ,बिना कोई निशान छोड़े...
कुछ ख्वाब अनदेखे से...

©Jaishree Bedi Nanda

White कभी कभी बस वक्त की तरह गुजर जाने का मन होता है... चुपचाप,निःशब्द बिना किसी शोर के कही चली जाना चाहती हूँ... पता ही न चले कि मेरा कोई अस्तित्व भी था... मैं थीं कहीं पर... सारे नामों निशान समेट कर निकल जाने का मन होता है... हर बार सोचती हूँ कि ईश्वर ने जब शरीर बनाया तब उन्हें एक और विकल्प देना था कुछ घण्टों के लिये मर जाने का विकल्प... कुछ देर के लिये ही सही सब खत्म हो जाने का एक पल... उस पल में मन कम से कम थाह तो ले लेता...कुछ देर के लिये आराम ही कर लेता...इतना कुछ एक साथ झेल झेल कर कैसा छलनी हुआ जा रहा है मन... झर-झर बहते आँसू भी अब हल्का नहीं कर पाते इसे... बोझ वही का वही रहता है चाहे कितना भी निकल जाये... हां जानती हूं कि ये सब बातें नहीं करनी चाहिए इतनी समझदार तो हो ही चुकी हूं पर अब ये मन घर मे चल रहे किसी समारोह के शोर के बीच एक कोने में बिस्तर पकड़ कर बेफिक्र सोते हुए बच्चे की तरह सोना चाहता है... कुछ देखना नहीं चाहता, कुछ सुनना नहीं चाहता.. बस चुपचाप गुजर जाना चाहता है हर हालातों के बीच..बिना कोई शोर किये ,बिना कोई निशान छोड़े... कुछ ख्वाब अनदेखे से... ©Jaishree Bedi Nanda

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