भाग्य कोई कहता भाग्य बड़ा है कोई कहता कर्म बुद्धि | हिंदी कविता

"भाग्य कोई कहता भाग्य बड़ा है कोई कहता कर्म बुद्धि विवेक हर कोई लगाए समझ न पाए मर्म गीता कहती कर्म करो तो लिख सकते हो भाग्य वर्ना द्वार खुला मन्दिर का अपना लो वैराग्य भाग्य भरोसे जो बैठा है लक्ष्य नहीं वो पाता समय निकल जाता है स्वर्णिम तो पीछे पछताता कहे भाग्य कि मेरे आगे वश न चले किसी का बेखुद जिससे रूठ मै जाती रहता नहीं कहीं का ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 भाग्य

कोई कहता भाग्य बड़ा है
कोई कहता कर्म
बुद्धि विवेक हर कोई लगाए
समझ न पाए मर्म

गीता कहती कर्म करो तो
लिख सकते हो भाग्य
वर्ना द्वार खुला मन्दिर का
अपना लो वैराग्य

भाग्य भरोसे जो बैठा है
लक्ष्य नहीं वो पाता
समय निकल जाता है स्वर्णिम
तो पीछे पछताता

कहे भाग्य कि मेरे आगे
वश न चले किसी का
बेखुद जिससे रूठ मै जाती
रहता नहीं कहीं का

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

भाग्य कोई कहता भाग्य बड़ा है कोई कहता कर्म बुद्धि विवेक हर कोई लगाए समझ न पाए मर्म गीता कहती कर्म करो तो लिख सकते हो भाग्य वर्ना द्वार खुला मन्दिर का अपना लो वैराग्य भाग्य भरोसे जो बैठा है लक्ष्य नहीं वो पाता समय निकल जाता है स्वर्णिम तो पीछे पछताता कहे भाग्य कि मेरे आगे वश न चले किसी का बेखुद जिससे रूठ मै जाती रहता नहीं कहीं का ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#भाग्य

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