कोई खामोश तो कोई ज़ुबानी कह रहा है
हर शख्स यहां अपनी कहानी कह रहा है
बहता तो नही मगर मैं मजबूर था बहुत
ये मेरी आँख से निकला पानी कह रहा है
उस कहो ये खुशी कही और जाकर करे
वो जो इस शाम को सुहानी कह रहा है
उसे छोड़ा था मैने उसी के खातिर मगर
वो मेरे इस अमल को बेईमानी कह रहा है
जिसने कहा था इश्क में फासले जरूरी है
मेरी शक्ल को जानी पहचानी कह रहा है
©Aawesh Khan
ghazal