White क्या लिखूं आज के शोर में। मुड़ जाऊॅं जिस | हिंदी Poetry

"White क्या लिखूं आज के शोर में। मुड़ जाऊॅं जिस ओर में। टूटे किनारों से कश्ती दूर, ले जाऊं कैसे उस छोर में। याद आते हैं गुज़रे लम्हे, अब भी हूॅं चितचोर में। वो झूठा अक्स निकला, गिनती है जिसकी चोर में। डर किसी से नही लगता सच बातें हैं जब ज़ोर में। सम्भल गया अब 'मनीष' चमकता सितारा भोर में। ©मनीष कुमार पाटीदार"

 White  क्या लिखूं आज के शोर में।
मुड़  जाऊॅं  जिस  ओर  में।

टूटे किनारों से कश्ती दूर,
ले जाऊं कैसे उस छोर में।

याद आते हैं गुज़रे लम्हे,
अब भी हूॅं चितचोर में।

वो  झूठा  अक्स  निकला,
गिनती है जिसकी चोर में।

डर किसी से नही लगता 
सच बातें हैं जब ज़ोर में।

सम्भल गया अब 'मनीष'
चमकता सितारा भोर में।

©मनीष कुमार पाटीदार

White क्या लिखूं आज के शोर में। मुड़ जाऊॅं जिस ओर में। टूटे किनारों से कश्ती दूर, ले जाऊं कैसे उस छोर में। याद आते हैं गुज़रे लम्हे, अब भी हूॅं चितचोर में। वो झूठा अक्स निकला, गिनती है जिसकी चोर में। डर किसी से नही लगता सच बातें हैं जब ज़ोर में। सम्भल गया अब 'मनीष' चमकता सितारा भोर में। ©मनीष कुमार पाटीदार

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