White मुझे चाहत नही दौलत-ओ-शौहरत ऊँची हस्ती की
मिरी ख्वाहिश है बस चाहत की इक छोटी सी बस्ती की।।
हमें मंज़ूर हैं फाँके बड़ी खुद्दार नजरें हैं
मुबारक़ हो तुम्हें दौलत तुम्हारी बेईमानी की।।
मिरी इस शख्सियत से क्यूँ भला हैरानिगी इतनी
गमों का जश्न है ये तो ख़ुमारी मुझको मस्ती की।।
ज़माना जब कभी भी नाम ले अपना जशन यूँ हो
कि जब भी दास्तां अपनी सुनाए कामयाबी की।।
दिखा कर के निवाला बच्चियों के सर को सहलाए
वजह भी होगी कुछ न कुछ तो इतनी मेहरबानी की।।
सभी सपनों ने तोड़े दम जब उसकी लाश देखी थी
बिना जोड़े के घर से दिल के टुकड़े की बिदाई की।।
न दे तू साथ चाहे रंज-ओ-ग़म सारे मुझे दे दे
कटेगी उम्र सारी है ज़रूरत इक निशानी की।।
गरीबों को निवाला दे के "विष्णु" खुश अगर तू है
नहीं दरकार फिर तुझको किसी भी बुतपरस्ती की।।
©Vishnu Hallu
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